विशिष्ट पोस्ट

इंसान हूँ मैं ....

इंसान हूँ मैं लेकिन  फिर भी क्यों निर्मम बन जाता हूँ,  नफ़रत के सागर में  न जाने कितने गोते लगाता हूँ। ममता ,विवेक ,दया और प्रेम  ...

रविवार, 31 दिसंबर 2017

इंसान हूँ मैं ....


इंसान हूँ मैं लेकिन 

फिर भी क्यों निर्मम बन जाता हूँ, 

नफ़रत के सागर में 

न जाने कितने गोते लगाता हूँ।


ममता ,विवेक ,दया और प्रेम 

ये ख़ूबियाँ  मुझे इंसान बनाती हैं ,

फिर भी न जाने क्यों मुझमें 

नफ़रत की चिंगारियां सुलगती हैं। 


अपने दोषों को 

अनदेखा कर ,

औरों के दोष 

दिन-रात गिनता हूँ।  


इंसान हूँ मैं लेकिन 


मेरे ज्ञान और दूरदर्शिता ने 

मुझे सूरज ,चाँद ,तारे दिखाए ,

मेरी भयावह सोच ने 

बर्बादी के काम कराये। 


दर्द बटाना 

मानवता है ,

फिर क्यों देता हूँ 

औरों को दर्द ?


शायद अपनी पहचान 

भूल गया हूँ 

इस बार ख़ुद  को ढूँढ़ूँगा ,

इंसान हूँ मैं 

इंसानियत की ज्योति जलाऊँगा 

नये  साल में नफ़रत की आग बुझाऊँगा। 

@रक्षा सिंह "ज्योति"


बुधवार, 28 दिसंबर 2016

नव वर्ष




बीतने  वाला  है  वर्ष  2016

आने  वाला   है  वर्ष   2017

कोई  संकल्प  लेगा

कोई  कसमें  खायेगा

यों  ही  एक और   कलेंडर   बदल  जायेगा.

नव बर्ष    की   मंगल कामनायें!